तुम्हीं हो हत्यारे !
इंद्रजीत चौबे
आईटी कंपनी में काम करने वाला रेहान अपनी बीवी और बच्ची रुकैय्या के साथ रहता था। अचानक एक दिन उसे कंपनी के काम से कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा। रेहान के जाने के बाद हैदराबाद में रहने वाला रुकैय्या के मामा आए और रुकैय्या उनके साथ जाने की जिद करने लगी। उसकी माँ ने रेहान से संपर्क करने की अनेक कोशिशें कीं लेकिन असफल रही।बेटी की जिद के आगे माँ हार गई और उसे हैदराबाद भेजने के लिए राजी हो गई। अपना प्रोजेक्ट पूरा कर रेहान खुशी-खुशी घर लौट रहा था। लेकिन घर पहुँचते ही उसकी खुशी काफूर हो गई। उसके घर का माहौल गमगीन था और अनेक मेहमान घर में थे।
उसे बताया गया कि हैदराबाद के सिनेमाघर में हुए विस्फोट में उसकी बेटी और साले के बेटे की मौत हो गई। रेहान के पैरों तले जमीन खिसक गई। रोना चाह रहा था लेकिन आँसू नहीं निकल रहे थे। उसके मुँह से केवल इतना ही निकला 'हे मालिक ये मैंने क्या किया?' अब धीरे-धीरे माजरा सभी की समझ में आ गया। रेहान ने सच कबूलते हुए बताया कि वह किसी आईटी कंपनी में काम नहीं करता बल्कि एक आतंकी संगठन का सक्रिय सदस्य है और हैदराबाद के सिनेमाघर में उसने ही अपने सहयोगियों की मदद से बम फिट किया था।उसकी पत्नी ने उसे झंझोड़ते हुए कहा इसका मतलब तुमने ही अपनी बेटी को मारा है। तुम्हीं हो उसके हत्यारे।पहले बेंगलुरू और फिर अहमदाबाद में हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोट जिसमें 45 लोगों की जानें गईं। इस कायराना हरकत के लिए क्या तुम्हारा भगवान (यदि मानते हो) तुम्हें माफ कर देगा। हिंसा की इजाजत तुम्हें किसने दी और यदि इतना ही बहादुरी का जज़्बा तुम्हारे भीतर है तो क्यों नहीं जाने जाते उन सेना के जवानों के सामने जो अपने हथियारों से तुम्हारा स्वागत करेंगे। उन्हें तो तैनात ही इसलिए किया गया है। तभी तुम्हें भी अपने भीतर उठ रहे इस जज्बे का इल्म होगा।
दुनिया के किसी भी कोने से बैठकर विस्फोट की धमकी देना और किसी भी राज्य, शहर के इलाके में बम रखकर चले जाना न ही कोई बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य है और न ही हौसले का। निर्दोष लोगों की जान लेकर सिद्ध क्या करना चाहते हो कि तुम मालिक के बताए रास्ते पर चल रहे हो।
यदि इसी दिमाग और ऊर्जा का उपयोग नेक और सकारात्मक काम में करो तो जरूर अपने घर, परिवार, समाज और देश का नाम रोशन करोगे और ईश्वर के नेक फरिश्ते कहलाओगे।
आतंकवाद जैसा अधमी कार्य करने वालों के साथ तो इनकी कौम भी नहीं होगी क्योंकि यह सभी लोग मानते हैं कि ऐसे दुराचारियों का कोई ईमान, धर्म और मज़हब नहीं होता।
ईमेल में लिखते हैं 'रोक सको तो रोक लो' चंद घंटों में ईमेल भेजने वाली जगह का पता लगाने वाली सुरक्षा एजेंसियाँ कुछ ही दिनों में इनके होश भी ठिकाने लगा देगी। यह बात भी भली-भाँति इन आततायियों के जेहन में रहती है।
इसके जिम्मेदार हम हैं : देश के प्रति प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि आसाराम बापू के आश्रम में हुई 2 बच्चों की मौत का तमाशा बनाने के बजाय सही तरीके से इसकी जाँच की माँग करे। ऐसे मामलों का फैसला करने के लिए यदि दोनों पक्ष सड़क पर उतर आए तो इन विस्फोटों की जिम्मेदारी आतंकी संगठनों से पहले हम पर आएगी।
आरक्षण को लेकर चला गुर्जरों का राज्यव्यापी हिंसक आंदोलन। 20-25 दिन से अधिक समय तक प्रमुख रेलों का रद्द होना कहीं से कहीं तक आम आदमी की सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं कहे जा सकते।
डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी और सिख आमने-सामने होकर लड़ते रहेंगे, राज्य बंद कराते रहेंगे तो इन विध्वंसकारी ताकतों का काम और आसान हो जाएगा और देश की फिजाओं में जहर घोलने का अच्छा मौका मिल जाएगा। क्योंकि सुरक्षा तंत्र को बरगलाने का काम तो हम ही कर रहे हैं। उनकी भी संख्या सीमित है। कब-कब और कहाँ-कहाँ उन्हें उलझाए रखेंगे।
इसके अलावा घर के आसपास या कहीं भी सार्वजनिक स्थान पर पड़े लावारिस सामान की जानकारी पुलिस को दें। नया किरायेदार रखने से पहले पुलिस को उसका विवरण देने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझें।
पुलिस प्रशासन से अपेक्षाएँ ः पुलिस प्रशासन से निवेदन करूँगा कि चौराहों पर खड़े होकर मुट्ठी बाँधकर, छोटी सी घड़ी करा हुआ नोट जिस शान से ले लेते हैं। कम से कम गाड़ियों की इतनी तो जाँच कर लें कि इनमें किसी न किसी रूप में विस्फोटक सामग्री तो नहीं जा रही है। किरायेदारों की जानकारी देने आएँ तो उसे उगाही का जरिया न मानते हुए गंभीरता से लें क्योंकि मकान-मालिक को पता है। मोबाइल गुम होने, वाहन चोरी की रिपोर्ट बगैर खर्चा-पानी के नहीं लिखी जाएगी।
केंद्र सरकार पीड़ित परिजनों के प्रति उदारता बरतें। सांसदों की खरीद-फरोख्त (प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से) करने वाली सरकार करोड़ों रुपया बहा सकती है और विस्फोटों में मरने वालों के परिजनों को 1 लाख रुपए की घोषणा ऊँट के मुँह में जीरे के समान है। यह राशि बढ़े और जल्द से जल्द पीड़ित परिवार को मुहैया करा दी जाए।
अंत में टीवी चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पुलिस प्रशासन का काम न करे और उनकी एक-एक गतिविधि को अपनी ब्रेकिंग न्यूज न बनाए तो बेहतर है। दम तोड़ते हुए आदमी को टीवी पर जब बेटे ने देखा तो पूछता है पापा इस आदमी को क्या हो गया, यह ऐसा क्यों कर रहा है। था ना अंदर तक हिलाकर रख देने वाला सवाल। उस समय अपने आपको मैं कोस रहा था कि क्यों मैं यह न्यूज देख रहा था? इस सवाल का जवाब अपनी अंतरात्मा से पूछकर बताएँ कि उसे क्या जवाब दूँ?
उपरोक्त सावधानियाँ रख अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर निश्चित रूप से इन आतंकवादी हतोत्साहित होंगे और देश में शांति कायम होगी और हम वर्ष भर एक खुशहाल मौसम में जीवन व्यतीत कर सकेंगे।
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