Thursday, August 14, 2008

झंडा ऊँचा रहे हमारा

झंडा ऊँचा रहे हमारा

सुनीता सिंह गर्ग

झंडा ऊँचा रहे हमारा..विश्व विजयी तिरंगा प्यारा..यह गीत भारत का हर बच्चा गुनगुनाता है.. बड़े ही शान से। आख़िर क्या बात है इस ध्वज में जिसने आज़ादी के परवानों में एक नया जोश भर दिया था और जो आज भी हर भारतीय को अपने गरिमामय इतिहास की याद दिलाता है और विभिन्नता में एकता वाले इस देश को एक सूत्र में बाँधे हुए है। हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज को बड़े ही आदर और सम्मान के साथ फहराया जाता है। देश के प्रथम नागरिक से लेकर आम नागरिक तक इसे सलामी देता है। 21 तोपों की सलामी से सेना इसका सम्मान करती है। किसी भी देश का झंडा उस देश की पहचान होता है। तिरंगा हम भारतीयों की पहचान है। राष्ट्रीय झंडे ने पहली बार आज़ादी की घोषणा के कुछ ही दिन पहले 22 जुलाई 1947 को पहली बार अपना वो रंग रूप पाया जो आज तक कायम है। हमारा राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से बना है इसलिए हम इसे तिरंगा भी कहते हैं। सबसे ऊपर केसरिया रंग फिर सफ़ेद और सबसे नीचे हरा। बीच में गहरे नीले रंग का चक्र बना है जिसमें 24 चक्र हैं जिसे हम अशोक चक्र के नाम से जानते हैं। इस प्रतीक को सारनाथ में अशोक महान के स्तंभ से लिया गया है। तिरंगे की बनावट पर हमारे देश में काफ़ी ध्यान दिया जाता है क्योंकि ये हमारे सम्मान से जुड़ा हुआ है। हर तिरंगे में अशोक चक्र श्वेत रंग के तीन चौथाई भाग में ही होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज खादी के कपड़े का होना चाहिए। आज जो ध्वज हमारे देश की पहचान है उसे इस रूप में ढालने वाले थे पिंगली वेंकैया।
तिरंगे में इन रंगो की क्या महत्ता है ये जानना बहुत ज़रूरी है। केसरिया यानी भगवा रंग वैराग्य का रंग है। हमारे आज़ादी के दीवानों ने इस रंग को सबसे पहले अपने ध्वज में इसलिए सम्मिलित किया जिससे आने वाले दिनों में देश के नेता अपना लाभ छोड़ कर देश के विकास में खुद को समर्पित कर दें। जैसे भक्ति में साधु वैराग ले मोह माया से हट भक्ति का मार्ग अपनाते हैं। श्वेत रंग प्रकाश और शांति के प्रतीक के रूप में लिया गया। हरा रंग प्रकृति से संबंध और संपन्नता दर्शाता है, और केंद्र में स्थित अशोक चक्र धर्म के 24 नियमों की याद दिलाता है।
हमारे राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास भी बहुत रोचक है। 20वी सदी में जब हमारा देश ब्रिटिश सरकार की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब स्वतंत्रता सेनानियों को एक ध्वज की ज़रूरत महसूस हुई क्योंकि ध्वज स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का प्रतीक रहा है। सन 1904 में विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने पहली बार एक ध्वज बनाया जिसे बाद में सिस्टर निवेदिता ध्वज से जाना गया। यह ध्वज लाल और पीले रंग से बना था। पहली बार तीन रंग वाला ध्वज सन 1906 में बंगाल के बँटवारे के विरोध में निकाले गए जलूस में शचीन्द्र कुमार बोस लाए। इस ध्वज में सबसे उपर केसरिया रंग, बीच में पीला और सबसे नीचे हरे रंग का उपयोग किया गया था। केसरिया रंग पर 8 अधखिले कमल के फूल सफ़ेद रंग में थे। नीचे हरे रंग पर एक सूर्य और चंद्रमा बना था। बीच में पीले रंग पर हिंदी में वंदेमातरम लिखा था।सन 1908 में सर भीकाजी कामा ने जर्मनी में तिरंगा झंडा लहराया और इस तिरंगे में सबसे ऊपर हरा रंग था, बीच में केसरिया, सबसे नीचे लाल रंग था। इस झंडे में धार्मिक एकता को दर्शाते हुए हरा रंग इस्लाम के लिए और केसरिया हिंदू और सफ़ेद ईसाई व बौद्ध दोनों धर्मों का प्रतीक था। इस ध्वज में भी देवनागरी में वंदेमातरम लिखा था और सबसे ऊपर 8 कमल बने थे। इस ध्वज को भीकाजी कामा, वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने मिलकर तैयार किया था। प्रथम विश्व युद्ध के समय इस ध्वज को बर्लिन कमेटी ध्वज के नाम से जाना गया क्योंकि इसे बर्लिन कमेटी में भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा अपनाया गया था।
सन 1916 में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे ध्वज की कल्पना की जो सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बाँध दे। उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर नेशनल फ़्लैग मिशन का गठन किया। वेंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से सलाह ली और गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँधने का संकेत बने। पिंगली वेंकैया लाल और हरे रंग के की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता। राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद विवाद चलते रहे। अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस ने सन 1924 में ध्वज में केसरिया रंग और बीच में गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह हिंदुओं का प्रतीक है। फिर इसी क्रम में किसी ने गेरुआ रंग डालने का विचार इस तर्क के साथ दिया कि ये हिंदू, मुसलमान और सिख तीनों धर्म को व्यक्त करता है।
काफ़ी तर्क वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार ध्वज, जिसमें केसरिया, श्वेत और हरे रंग के साथ केंद्र में अशोक चक्र स्थित था, को सहमति मिल गई। इसी ध्वज के तले आज़ादी के परवानों ने कई आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले फिर कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय ध्वज को क्या रूप दिया जाए इसके लिए फिर से डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को इस कमेटी ने अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफ़ारिश की। 15 अगस्त 1947 को तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया।
राष्ट्रीय ध्वज हमारे देश की पहचान है इसलिए इसे हर भारतीय सम्मान दे ये तो ज़रूरी है ही कोई भी व्यक्ति इसकी गरिमा को धूमिल ना करे इसके लिए भारतीय कानून में कुछ धाराएँ बनाई गई है। फ्लैग कोड इंडिया -2002 में राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी कुछ ख़ास बातों का ज़िक्र किया गया है जिसे हम भारतीयों को जानना ज़रूरी है। सन 2002 के पहले आम जनता राष्ट्रीय दिवस को छोड़ किसी और दिन इसे किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं लगा सकती थी। सिर्फ़ सरकारी कार्यालयों में ही इसे लगाया जा सकता था। सन 2002 में भारत के जाने माने उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने कार्यालय के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज लगाया था जिसके लिए उन्हें सूचित किया गया कि उन्हें ऐसा करने पर कानूनी कार्यवाही से गुज़राना होगा। इसके विरोध में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जन हित याचिका इस बाबत दायर की कि भारत की आम जनता को सम्मान के साथ राष्ट्रीय ध्वज लहराने और उसे प्यार देने का नागरिक अधिकार है। यह मामला उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय में गया और न्यायालय ने भारत सरकार को इस मामले पर विचार करने के लिए एक कमेटी बिठाने की सलाह दी। अंत में भारतीय मंत्रालय ने एक संवैधानिक संशोधन कर सभी भारतवासियों को साल के 365 दिन राष्ट्रध्वज सम्मान के साथ लगाने का अधिकार दिया।
इसी के साथ ध्वज के सम्मान की बात भी स्पष्ट कर दी गई कि ध्वज फहराने के समय किस आचरण संहिता का ध्यान रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी भूमि पर नहीं गिरना चाहिए और ना ही धरातल के संपर्क में आना चाहिए। सन 2005 के पहले तक इसे वर्दियों और परिधानों में उपयोग में नहीं लाया जा सकता था, लेकिन सन 2005 में फिर एक संशोधन के साथ भारतीय नागरिकों को इसका अधिकार दिया गया लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है ये किसी भी वस्त्र पर कमर के नीचे नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी अधोवस्त्र के रूप में नहीं पहना जा सकता है।

Friday, August 1, 2008

तुम्हीं हो हत्यारे !

तुम्हीं हो हत्यारे !
इंद्रजीत चौबे
आईटी कंपनी में काम करने वाला रेहान अपनी बीवी और बच्ची रुकैय्या के साथ रहता था। अचानक एक दिन उसे कंपनी के काम से कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा। रेहान के जाने के बाद हैदराबाद में रहने वाला रुकैय्या के मामा आए और रुकैय्या उनके साथ जाने की जिद करने लगी। उसकी माँ ने रेहान से संपर्क करने की अनेक कोशिशें कीं लेकिन असफल रही।बेटी की जिद के आगे माँ हार गई और उसे हैदराबाद भेजने के लिए राजी हो गई। अपना प्रोजेक्ट पूरा कर रेहान खुशी-खुशी घर लौट रहा था। लेकिन घर पहुँचते ही उसकी खुशी काफूर हो गई। उसके घर का माहौल गमगीन था और अनेक मेहमान घर में थे।
उसे बताया गया कि हैदराबाद के सिनेमाघर में हुए विस्फोट में उसकी बेटी और साले के बेटे की मौत हो गई। रेहान के पैरों तले जमीन खिसक गई। रोना चाह रहा था लेकिन आँसू नहीं निकल रहे थे। उसके मुँह से केवल इतना ही निकला 'हे मालिक ये मैंने क्या किया?' अब धीरे-धीरे माजरा सभी की समझ में आ गया। रेहान ने सच कबूलते हुए बताया कि वह किसी आईटी कंपनी में काम नहीं करता बल्कि एक आतंकी संगठन का सक्रिय सदस्य है और हैदराबाद के सिनेमाघर में उसने ही अपने सहयोगियों की मदद से बम फिट किया था।उसकी पत्नी ने उसे झंझोड़ते हुए कहा इसका मतलब तुमने ही अपनी बेटी को मारा है। तुम्हीं हो उसके हत्यारे।पहले बेंगलुरू और फिर अहमदाबाद में हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोट जिसमें 45 लोगों की जानें गईं। इस कायराना हरकत के लिए क्या तुम्हारा भगवान (यदि मानते हो) तुम्हें माफ कर देगा। हिंसा की इजाजत तुम्हें किसने दी और यदि इतना ही बहादुरी का जज़्बा तुम्हारे भीतर है तो क्यों नहीं जाने जाते उन सेना के जवानों के सामने जो अपने हथियारों से तुम्हारा स्वागत करेंगे। उन्हें तो तैनात ही इसलिए किया गया है। तभी तुम्हें भी अपने भीतर उठ रहे इस जज्बे का इल्म होगा।
दुनिया के किसी भी कोने से बैठकर विस्फोट की धमकी देना और किसी भी राज्य, शहर के इलाके में बम रखकर चले जाना न ही कोई बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य है और न ही हौसले का। निर्दोष लोगों की जान लेकर सिद्ध क्या करना चाहते हो कि तुम मालिक के बताए रास्ते पर चल रहे हो।
यदि इसी दिमाग और ऊर्जा का उपयोग नेक और सकारात्मक काम में करो तो जरूर अपने घर, परिवार, समाज और देश का नाम रोशन करोगे और ईश्वर के नेक फरिश्ते कहलाओगे।
आतंकवाद जैसा अधमी कार्य करने वालों के साथ तो इनकी कौम भी नहीं होगी क्योंकि यह सभी लोग मानते हैं कि ऐसे दुराचारियों का कोई ईमान, धर्म और मज़हब नहीं होता।
ईमेल में लिखते हैं 'रोक सको तो रोक लो' चंद घंटों में ईमेल भेजने वाली जगह का पता लगाने वाली सुरक्षा एजेंसियाँ कुछ ही दिनों में इनके होश भी ठिकाने लगा देगी। यह बात भी भली-भाँति इन आततायियों के जेहन में रहती है।
इसके जिम्मेदार हम हैं : देश के प्रति प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है ‍कि आसाराम बापू के आश्रम में हुई 2 बच्चों की मौत का तमाशा बनाने के बजाय सही तरीके से इसकी जाँच की माँग करे। ऐसे मामलों का फैसला करने के लिए यदि दोनों पक्ष सड़क पर उतर आए तो इन विस्फोटों की जिम्मेदारी आतंकी संगठनों से पहले हम पर आएगी।
आरक्षण को लेकर चला गुर्जरों का राज्यव्यापी हिंसक आंदोलन। 20-25 दिन से अधिक समय तक प्रमुख रेलों का रद्द होना कहीं से कहीं तक आम आदमी की सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं कहे जा सकते।
डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी और सिख आमने-सामने होकर लड़ते रहेंगे, राज्य बंद कराते रहेंगे तो इन विध्वंसकारी ताकतों का काम और आसान हो जाएगा और देश की फिजाओं में जहर घोलने का अच्छा मौका मिल जाएगा। क्यों‍‍कि सुरक्षा तंत्र को बरगलाने का काम तो हम ही कर रहे हैं। उनकी भी संख्या सीमित है। कब-कब और कहाँ-कहाँ उन्हें उलझाए रखेंगे।
इसके अलावा घर के आसपास या कहीं भी सार्वजनिक स्थान पर पड़े लावा‍रिस सामान की जानकारी पुलिस को दें। नया किरायेदार रखने से पहले पुलिस को उसका विवरण देने की अपनी ‍नैतिक जिम्मेदारी को समझें।
पुलिस प्रशासन से अपेक्षाएँ ः पु‍‍लिस प्रशासन से निवेदन करूँगा कि चौराहों पर खड़े होकर मुट्‍ठी बाँधकर, छोटी सी घड़ी करा हुआ नोट जिस शान से ले लेते हैं। कम से कम गाड़ियों की इतनी तो जाँच कर लें कि इनमें किसी न किसी रूप में विस्फोटक सामग्री तो नहीं जा रही है। किरायेदारों की जानकारी देने आएँ तो उसे उगाही का जरिया न मानते हुए गंभीरता से लें क्योंकि मकान-मालिक को पता है। मोबाइल गुम होने, वाहन चोरी की रिपोर्ट बगैर खर्चा-पानी के नहीं लिखी जाएगी।
केंद्र सरकार पीड़ित परिजनों के प्रति उदारता बरतें। सांसदों की खरीद-फरोख्त (प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से) करने वाली सरकार करोड़ों रुपया बहा सकती है और विस्फोटों में मरने वालों के परिजनों को 1 लाख रुपए की घोषणा ऊँट के मुँह में जीरे के समान है। यह राशि बढ़े और जल्द से जल्द पीड़ित परिवार को मुहैया करा दी जाए।
अंत में टीवी चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पुलिस प्रशासन का काम न करे और उनकी एक-एक गतिविधि को अपनी ब्रेकिंग न्यूज न बनाए तो बेहतर है। दम तोड़ते हुए आदमी को टीवी पर जब बेटे ने देखा तो पूछता है पापा इस आदमी को क्या हो गया, यह ऐसा क्यों कर रहा है। था ना अंदर तक हिलाकर रख देने वाला सवाल। उस समय अपने आपको मैं कोस रहा था कि क्यों मैं यह न्यूज देख रहा था? इस सवाल का जवाब अपनी अंतरात्मा से पूछकर बताएँ कि उसे क्या जवाब दूँ?
उपरोक्त साव‍धानियाँ रख अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर निश्चित रूप से इन आतंकवादी हतोत्साहित होंगे और देश में शांति कायम होगी और हम वर्ष भर एक खुशहाल मौसम में जीवन व्यतीत कर सकेंगे।
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