दर्द कुछ गहरा हो तो गुनगुनाओ.....
हेमंत दा की १९ वीं पुण्यतिथि पर विशेष
श्रीराजेश
सुरों के राही हेमंत दा को अलविदा कहे १९ साल हो गये लेकिन है अपना दिल तो आवारा...... गाने आज भी लोग गुनगुनाते है। गायन की विशिष्ठ शैली की वजह से उनकी अपने समकालीनों में अलग पहचान बनी। अपनी गहरी आवाज और विशिष्ट गायन शैली के साथ संगीत की विविध विधाओं में जबरदस्त ख्याति अर्जित करने वाले गायक-संगीतकार हेमंत कुमार की 26 सितम्बर को पुण्यतिथि है।
ऐसे समय में जब गायकी, कला से ज्यादा व्यवसाय में तब्दील हो चुका हो, रियलिटी शोज ने हर गाने वाले के सामने अवसरों की भरमार पैदा कर दी हो और प्रौद्योगिकी ने हर जुबान रखने वाले को गायक का रुतबा दे दिया हो, सच्ची और मासूम आवाज के धनी हेमंत दा जैसे गायक की याद एक ठंडी हवा के झोंके के समान आती है।
सन 1920 में वाराणसी में एक बंगाली परिवार में जन्मे हेमंत के घरवाले उनके बचपन में ही कोलकाता चले गए। आरंभिक शिक्षा दीक्षा के बाद हेमंत के परिजनों की इच्छा थी कि वे जादवपुर विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करें लेकिन उन्होंने उनसे बगावत करके संगीत में अपना भविष्य चुनने की ठानी।
संगीत के प्रति अपनी दीवानगी के बारे में उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, "मैं हमेशा गाने का मौका तलाशता रहता था चाहे वो कोई धार्मिक उत्सव हो या पारिवारिक कार्यक्रम। मैं हमेशा चुने हुए गीत गाना पसंद करता था।"
हेमंत दा ने जिस दौर में संगीत को गंभीरता से लेना शुरू किया उसे हिंदी सिनेमा के 'सहगल काल' के नाम से जाना जाता है। यह वह दौर था जब गायकी पर कुंदनलाल सहगल और पंकज मलिक जैसे गायकों का लगभग एकाधिकार था और नए गायकों के लिए सिने जगत में जगह बनाना ख्वाब के समान था।
चालीस के दशक के मध्य धुन के पक्के हेमंत 'भारतीय जन नाट्य संघ' (इप्टा) के सक्रिय सदस्य बन गए और वहीं उनकी दोस्ती हुई गीतकार-संगीतकार सलिल चौधरी से। सन 1948 में हेमंत ने गान्येर बधु (गांव की बहू) शीर्षक वाला एक गीत गाया जो सलिल चौधरी द्वारा लिखा और संगीतबद्ध किया गया था। छह मिनट के इस गीत में बंगाल के एक गांव की बहू के दैनिक जीवन का चित्रण किया गया था।
इस गीत ने हेमंत और सलिल दोनों को अपार लोकप्रियता दिलाई। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यही वह गीत था जिसने हेमंत कुमार को अपने समकालीनों के समकक्ष स्थापित किया। इसके बाद सलिल और हेमंत की जुगलबंदी ने बांग्ला संगीत जगत में खूब धूम मचाई।
कुछ बंगाली फिल्मों में संगीत देने के बाद हेमंत मुंबई आ गए और उन्होंने सन 1952 में अपनी पहली हिंदी फिल्म को संगीत दिया जिसका नाम था ‘आनंद मठ’। इस फिल्म में लता मंगेशकर के गाए गीत ‘वंदे मातरम’ ने अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की। साथ ही साथ हेमंत ने पार्श्व गायक के रूप में अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी। अभिनेता देवानंद की शुरुआती फिल्मों 'जाल' और 'सोलहवां साल' में गाए उनके गीतों 'ये रात ये चांदनी..' और 'है अपना दिल तो आवारा..' आदि ने हेमंत कुमार के लिए अपार लोकप्रियता हासिल की।
जाल, नागिन, अनारकली, सोलहवां साल, बात एक रात की, बीस साल बाद, खामोशी, अनुपमा आदि फिल्मों में हेमंत दा की मधुर आवाज का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा। तुम पुकार लो.., जाने वो कैसे लोग थे.., छुपा लो तुम दिल में प्यार मेरा.., ना तुम हमें जानो.. जैसे सदाबहार गीतों ने श्रोताओं के मन पर अमिट छाप छोड़ी।
तितली के परों की सी कोमल आवाज का मालिक, सुरों का यह राही 26 सितम्बर 1989 को सदा-सदा के लिए सो गया।
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Thursday, September 25, 2008
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